Hizron ka Khanqah- Mehrauli
हिजङों का खानकाह का शाब्दिक अर्थ एक "सूफी आध्यात्मिक प्रतिशोध के लिए"
मेहरौली स्थित हिजड़ों की खानकाह किन्नर समुदाय के लिए आध्यात्म से जुड़ने का एक जरिया है। बाहर परिसर में किन्नरों की 50 कब्रें हैं। इन सभी को लोदी वंश के शासनकाल में 15वीं सदी में यहां दफनाया गया था। किन्नारों के लिए यह स्थान खास है। यहां पर आज भी किन्नर समूहों में या अकेले दुआ करने आते हैं और फूल चढ़ाते हैं। ज्यादातर किन्नर यहां गुरुवार को दुआ के लिए आते हैं। यहां के आसपास दुकानें हैं जिनका किराया आज भी महज 100 रुपये प्रति महीना है।
#HizronKaKhanqah
किन्नरों के अंतिम संस्कार को गैर-किन्नरों से छिपाकर किया जाता है। इनकी मान्यता के अनुसार अगर किसी किन्नर के अंतिम संस्कार को आम इंसान देख ले, तो मरने वाले का जन्म फिर से किन्नर के रूप में ही होगा। इनकी डेड बॉडी को जलाया नहीं जाता। इनकी बॉडी को दफनाया जाता है। अंतिम संस्कार से पहले बॉडी को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है। कहा जाता है इससे उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है। अपने समुदाय में किसी की मौत होने के बाद किन्नर अगले एक हफ्ते तक खाना नहीं खाते।
किन्नर समाज अपने किसी सदस्य की मौत के बाद मातम नहीं मनाते। इसके पीछे ये वजह है कि मौत के बाद किन्नर को नरक रूपी जिन्दगी से से मुक्ति मिल गई। मौत के बाद किन्नर समाज खुशियां मनाते हैं और अपने अराध्य देव अरावन से मांगते हैं कि अगले जन्म में मरने वाले को किन्नर ना बनाएं।
किन्नरों के शव को दिन के वक्त नही बल्कि रात के वक्त निकाली जाती है।
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